कहानी बारिश की बूंदों की  Rahul Kumar Ranjan

कहानी बारिश की बूंदों की

Rahul Kumar Ranjan

फैली हुई दिशाओं में
बहते हुए झोखों ने
घिरते हुए बदल से
तोड़ लिया रिश्ता फिर,
और टूटे हुए मेघों से
गिरती हुई बूंदों ने
अधजगी नीदों  में
छूटे हुए साथ में
बदली भरी रात में.
रिसती हुई आँखों से
तिरते हुए ख़्वाबों से
उड़ते हुए मैना बन
डरते हुए अधरों से
बिन तेरे ना रैना कह
बिन तेरे, मैं,‘ना’ कह
टूटे हुए वादे ले
खोई हुई यादों में
गिरते हुए राहों पर
मिलती हुई गलियों में
सूखी हुई शाख़ों पर
टूटे हुए पातों पर
झुलसी हुई कलियों को
हिलती हुई डालियों को
बागों में हँसा कर ,
बिजलियों में समाकर 
जा रही है, नदिया संग
खो रहा वो अपना रंग 
फिर भी उम्मीद है वो आएगा 
धूप संग उड़ा ले जाएगा,
अपने सतरंगी रंग में रंगकर 
अपने घर वो  प्यारा अम्बर 
यही तकते हुए गा रही है 
थकते हुए जा रही है 
हाँ  ! यही सोचते हुए कि 
काश तुम लौट आते इसी मानसून।

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