स्वप्न कुछ कहते हैं Rahul Kumar Ranjan
स्वप्न कुछ कहते हैं
Rahul Kumar Ranjanसुहानी सी सुबह
दिसंबर की चौखटों को लाँघ कर
सीधे दिल की दहलीज़ में उतर आई
असरहीन दिखने वाला सूर्य ने भी
उम्मीदों वाली धूप बिखेर दी है
सफलता की टोकरियाँ ऐसे खुली हैं
मानो कह रही हों
लूट ले जाओ, अपने सुनहरे मेहनत के पल
समेट लो बरसों से बिखरी हुई सारी खुशियां
बस ! क्या था
फैला दिया इरादों वाले पंखों को
खड़ा कर दिया शीशे जरे सपनों का महल
कभी कांच से टूटे हुए वादों को चुनने लगा
तो कभी आशाओं से भरे पर्दों को बुनने लगा।
लगा, मेरे पाषाण-ताम्रदि युगों का अंत हुआ
अनजाने, उबड़-खाबड़ रास्ता चलना अब बंद हुआ।
पर सहसा,
सब लौट गये
टकराकर उन दीवारों से
किरणों सी!
बस अब झांक रही थी पर्दों से
शायद भोर हो चुकी थी।
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जो कुछ भी हम अपने स्वप्न में देखते हैं वह हमारे मन की वर्तमान स्तिथि को दर्शाता है, इस कविता में एक इंसान काफी मेहनत के बाद सफलता के बहुत करीब होता है अपने ख़्वाबों को मानो चूम कर पूरी होने की बधाइयाँ दे रहा होता है तभी अचानक खिड़की से सूरज का झांकना नज़र आता है, आँखें चौन्धिया सी जाती है। पता चलता है जो कुछ भी देखा वह एक स्वप्न मात्र था।