वर्षा Vimal Kant Pandey
वर्षा
Vimal Kant Pandeyदूर जंगलों में
पास पर्वतों के
था मैं बैठा
देखने रवि की बाल छटा
पार पर्वतों से तभी
पंख फैलाये आयी काली घटा
चहुँ ओर फैला अँधियारा
बादलों नें रवि का
रास्ता था घेरा
झींगुर बजाने लगे सितार
मोर दिखाने लगे नाच
दिया मेंढको ने भी साथ
छम-छम बूंदों की आई जब आवाज़
प्यासी धरती मुस्काने लगी
भीनी-भीनी खुशबू फैलने लगी
लिपटी धूल में
दूब ने भी ली अंगड़ाई
छम-छम बूंदों ने जब आवज़ लगाई