आगाज़ Vivek Tariyal
आगाज़
Vivek Tariyalजननी है यह जन्मभूमि इसका प्रताप, इसका बल है
पाले हैं इसने वीर पूत, बहता गंगाजल कल-कल है ।
सम्पूर्ण जगत सम्मान करे, ऐसी मेरी भारत माँ है
मधुपर्क कराती शिशुओं की माँ जैसी मेरी भारत माँ है ।
भारत माता के भाल पर, बिंदी जो शोभा देती है
इसके नागरिकों की जिह्वा पर, हिंदी वह शोभा देती है ।
जननी तू है जन्मदात्री, तुझसे ही है मेरा स्वाभिमान
धन्य हुआ जन्म पाकर तुझपर, दिलाया तूने है सम्मान ।
ओ गौरवमयी देव स्वरूपा, तू है निर्मल धारा जैसी
देखीं हैं तूने सदियाँ, जन्मी हैं सभ्यताएँ कैसी-कैसी ।
तुझ पर ही है जन्म लिया, राणा, पृथ्वी और शिवाजी ने
लिया है तुझ पर जन्म, रज़िया और पन्ना जैसी दासी ने ।
जन्मभूमि में जन्म लिया, इसने हमको पाला पोसा
दी धूप-छाँव, दी नदी-नाव, करके हम पर बड़ा भरोसा ।
निज हित हमने इसके, संसाधनों का भी है ह्रास किया
कहो मनुज माँ हेतु तुमने, अब तक क्या है ख़ास किया ?
भानु-भास्कर, शशि-मयंक, साक्षी हैं स्वर्णिम इतिहास के
कालांतर की गतिविधियों के, सभ्यता में हुए विकास के ।
तेरा महिमामंडन करता, संपूर्ण जगत का कण-कण है
किन्तु आज बन चुका हर नगर-गाँव, महाभारत का रण है ।
एक समय वह भी था जब, भाई हित भाई मरता था
प्रत्येक निवासी भारत का, बस सत्य आचरण करता था ।
सत्यहीन सी हुई धरा, अब पल-पल क्रंदन करती है
असभ्य हुई मानव जाति, भ्रष्टों का वंदन करती है ।
विश्वगुरु की पवित्र धरा पर, कूटनीति की हलचल है
अपनी इस परित्यक्त दशा पर, धरा भी रोती पल-पल है ।
कैसे सह सकता हूँ मैं, माँ पर होते इस अत्याचार को
नहीं दे सकता संपूर्ण देश, एक निरंकुश परिवार को ।
मूक-मौन मैं रहूँ खड़ा, यह संभव कैसे हो सकता है ?
मेरे रहते धरती पर भ्रष्टाचार, विजयी कैसे हो सकता है ?
आँच न आने दूंगा तुझ पर, हे जन्मभूमि यह प्रण है मेरा
तेरी खातिर है यह शरीर, रक्त का भी हर कण-कण है तेरा ।
समय आ गया है अब, रणभेरी व बिगुल बजाने का
समय आ गया है अब, जयगीतों को गाने का ।
समय आ गया है अब, शोषकों की धज्जियाँ उड़ाने का
समय आ गया है अब, माँ को जंजीरों से मुक्त कराने का ।
दूर करूँगा इस पवित्र धरा को, पाप के हर निशान से
रचूँगा भविष्य नए भारत का, अपने लहू से अपने प्राण से ।
ये प्रार्थना है मेरी उससे, जो साथ मेरा दे सकता हो
जो निर्भय होकर सत्य राह पर, संग मेरे चल सकता हो ।
हाथ उठाए वह, जिसे अपनी जन्मभूमि से प्यार हो
जिसके शरीर की धमनियों में, भारतीय रक्त का संचार हो ।
आगे आए वह, जिसे भारत माता से प्यार हो
आगे आए वह, जिसे भारत माता से प्यार हो ।
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भारत, भारतीय और भारतीयता उन शब्दों में से एक हैं जिन्हें सुनते ही हर व्यक्ति के अंदर देश के प्रति कुछ करने और उससे जुड़ाव रखने की भावना का वेग अचानक ही बढ़ जाता है । किन्तु आज के समय में हम अपनी ही माँ का सीना छलनी करने और उसे खोखला बनाने में कोई कसार बाकी नहीं रख रहे । मातृभूमि के ऋण से उऋण होना तोदूर, हम उसी का सौदा करने के विचारों को समाज में पनपने का अवसर दे रहे हैं और आज स्थिति यह है कि माँ के रुदन की चीत्कार हमारे कानों तक पहुँचनी बंद हो गयी है !