दिनचर्या की दस्तक Arpan Jain
दिनचर्या की दस्तक
Arpan Jain(1)
कल रात मेरे आक्रोश ने
अजीब-सी हरकत कर दी,
मेरी दिनचर्या कल रात ही
मेरे बिस्तर तक पहुँच गई,
सलवटों को झकझोरती
मेरे मानस पर चढ़ गई
रिश्तों की धुन्ध में भी
अजीब जंग सी छिड़ गई
चादरों ने भी तंज़ की
बौछार सी कर दी
कल रात मेरे आक्रोश ने
अजीब- सी हरकत कर दी,
(2)
लगा मुझे गफलत में
शायद गुबार ने बग़ावत कर दी
कई दर्दनाक मोड़ आ गये
असल जिंदगी में आज तो
ताश के पत्तों के महल की मानिंद
मेरे होश में सपनों की चुप्पी टूट गई,
सहम सी गई ख्वाबों की डलिया
जैसे टूटे हुई आईने ने इबारत गड़ दी
कल रात मेरे आक्रोश ने
अजीब- सी हरकत कर दी,
(3)
संभलते-संभलते मैं खड़ा ही हुआ
अचानक नींद ने टूट जाने की हिम्मत कर दी
ज़िन्दगी में सब कुछ बदल ही गया मानों
जैसे हर रात के बाद सूरज बदल जाता है
एक स्याह ख्वाब की गश्त ही होगी
पर ज़िन्दगी ने हक़ीकत बेपर्दा कर दी
बिछड़ते हुए रिश्तों की आहट
सरसराहटों ने कुछ लकीरें खींच दी
कल रात मेरे आक्रोश ने
अजीब-सी हरकत कर दी,
(4)
पिंजरे में ही रहती तुम क़ैद ‘दिनचर्या’
पर घर में तुमने अब दस्तक कर दी
दौड़ती हुई ज़िद से कुछ
छंटनी करनी बाकी है अब
खामोश इशारे थे असल ज़िन्दगी के
बेमौसम ही सावन ने झड़ी कर दी
अब संभालना हैं जिंदगी को 'अवि'
इशारों इशारों में गहरी उसने कह दी
कल रात मेरे आक्रोश ने
अजीब- सी हरकत कर दी