एक हसीन रात  विनोद कुमार मीणा

एक हसीन रात

विनोद कुमार मीणा

चांदनी रात थी, पिया के साथ थी
पिया ने पकड़ा हाथ, मैं सिहर उठी 
 

मानो जैसे बदन में ज्वाला जल उठी
उस पल के लिए पिया पर मर मिटी
 

तड़प - तड़प के मेरा हाल बुरा हो रहा था
पिया मेरा मंद-मंद मुस्कान देता जा रहा था
 

वो बादलों की तरह बरसता रहा
मैं प्यासी भीगती रही
 

उसकी पहली छुअन से मेरा बदन रोमांचित हुआ
वो पत्थर सा  शरीर अब पिघल कर मोम हुआ
 

उसके एक प्यार के घूँट से मन मचलने लगा
देखते ही देखते फूल अब खिलने लगा

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2004
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