नन्ही परी  Abhishek Bijlwan

नन्ही परी

Abhishek Bijlwan

इस जहाँ में नन्हे कदमों से, नन्ही सी इक परी है आई
सुना था उसने काफी सबसे, तो इस दुनिया में 'जीने' आई
 

जीने का एक नशा था उसको, हाँ, 'बस जीना' था उसको
ताज़ी हवा साँसों में भरके, पंख फैला, बस उड़ना था उसको
 

पर जैसे ही वो नन्ही जान, आई इस दुनिया में अंजान
फैला कर दुनिया ने जाल, कैद करी वो 'नन्ही जान'
 

दुनिया जैसे लगती थी सोना, हर पल उड़ती हर एक कोना
पर दुनिया ने 'पर' ही कतरे, और कहा 'इंसाँ' तुम हो ना!
 

चाहा था उसने 'बस जीना', पर लगता है 'पड़ेगा जीना'
सोचा था 'अमृत' है ये तो, पर अब पड़ेगा 'विष' को पीना
 

भूल गई पंखों को अब वो, इंसाँ ही तो हो गयी थी अब वो
फिर सोचा उसने 'इंसाँ ही' हूँ, 'इंसाँ हो के ही' जी लेती हूँ तो
 

फिर परी ने 'इंसाँ होना' जाना, कुछ भी कर सकने का जज्बा जाना
दुनिया के हर जालों से हो कर, उड़ जाने का कौशल जाना
 

अब मुड़ के जो परी ने देखा, पंख कभी कतरे ही ना थे
जाल जो दुनिया ने फेंका था, वो बस 'मन पर' ही छांपे थे
 

कुछ सोचा परी ने..... फिर मुस्काई, अरे! यही तो 'जीना' है
'पर' तो पहले भी थे 'पर', उनका मोल न मैंने जाना
तो वो भी क्या जीना था, जब खुद का मोल न मैंने जाना
 

ये जाले ही तो राहें हैं, जो रूह तक पहुंचाते हैं
सीखा हर मौसम में उड़ना, अरे! यही तो जीना है
खुद का मोल जो मैंने जाना, अरे! यही तो जीना है
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, अरे! यही तो जीना है

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