कवि-मन Sachin Khandelwal
कवि-मन
Sachin Khandelwalमस्तिष्क में विचारों की उथल है
प्रतीत होता शांति का यही एक हल है
उंड़ेल दूँ कागज पर उद्गारों को
तोड़ दूँ तानों को, रोक दूँ झंकारों को
नित-नित लिखूँ , नित-नित पढ़ूँ
साहित्य दुर्ग, पर्वत चढ़ूँ
प्रेम लिखूँ , द्वेष लिखूँ
भाषा लिखूँ , वेश लिखूँ
मिलन लिखूँ, विरह लिखूँ
नमन लिखूँ , ज़िरह लिखूँ
रूप लिखूँ , राग लिखूँ
मोह लिखूँ, वैराग लिखूँ
न्याय लिखूँ, लिखूँ नीति
भविष्य लिखूँ , लिखूँ आप-बीती
व्यंग्य लिखूँ, गंभीर लिखूँ
हास्य लिखूँ, पर-पीर लिखूँ
सब कुछ लिखूँ,
ऐसा लिखूँ की सत्ता हिले, जड़बुद्धि नर्म हो
मनोरंजन से ऊपर उठकर, जीवन का मर्म हो
अंगीकार करेगा जनमानस, साधना पूर्ण तभी होगी
नाच उठेगा कवि-मन मेरा, कुंठा दूर तभी होगी
हाँ, कुंठा दूर तभी होगी…