होली के रंग Vivek Tariyal
होली के रंग
Vivek Tariyalहोली ऐसी खेलिये आएँ सब जान साथ,
जाति-धर्म का भेद मिटे, यही पते की बात।
रंगों में रंग जाएगा जब हर व्यक्ति का मन,
बह जाएगा हर द्वेष जब, तब मन होगा पावन।
बिछड़े ह्रदय मिल जाएँगे होली में इस बार,
हर घर आँगन मिलन की, छा जाएगी बहार।
एक हैं सब भारतवासी माँ भारती की संतान,
भले रंगे हो अलग रंग में, किन्तु एक पहचान।
देंगे सम्मान सभी जन को बिना किसी भेदभाव,
तोड़ेंगे रूढ़ बंधन सारे, बदलेंगे निज स्वभाव।
मर्यादाओं का ध्यान रखेंगे, भूलेंगे नहीं ये बात,
खुशियाँ बांटेंगे घर-घर जाकर, नहीं करेंगे आघात।
आइये प्रण लें इस होली में हम बदलेंगे स्वभाव,
भूलेंगे सब द्वेष पुराने, फैलाएँगे सद्भाव।
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इस कविता के माध्यम से होली के पावन त्यौहार पर सभी से द्वेष भूलकर साथ आने का आह्वाहन किया जा रहा है। हमें चाहिए कि हम जाति, धर्म या अन्य किसी भी प्रकार के भेदभाव को समूल नष्ट कर एक हो जाएँ, इसी से समाज प्रगति की ओर अग्रसर होगा। हम चाहे किसी भी धर्म का अनुसरण करें किन्तु यह न भूलें की ईश्वर एक है और हम सभी भारत माँ की संतान हैं।