नारी Deeksha Dwivedi
नारी
Deeksha Dwivediहै शोभित कभी विजयमाला सी
कभी मंज़िल का आगाज़ सी है
कभी मौन नेत्र की दृष्टि सी
कभी जिह्वा की आवाज सी है
कभी पादुकाओं सी पैरों की
कभी मस्तक सजे हुए ताज सी है
कभी शान्त चित्त समर्पण सी
कभी शहनाई के साज सी है
करे क्षण में समृद्ध दरिद्रता को
किसी नृप के दुर्लभ काज सी है
बचपन के किसी विकार रहित
संजोये हुए विश्वास सी है
है घोषणा-पत्र कभी प्रचलित
कभी चार दीवारी के राज सी है
है जान जननी की, अभिमान जनक का
कन्या हर घर की लाज सी है
अविस्मरणीय इतिहास, संकल्पित भविष्य
नारी तो उज्जवल आज सी है!!
नारी तो उज्जवल आज सी है!!