आज का इंसान VINAY KUMAR KUSHWAHA
आज का इंसान
VINAY KUMAR KUSHWAHAइंसान आज इतना उदास क्यों है?
हर वस्तु को पाने की प्यास क्यों है?
उसे जीवन ही जीना है तो,
नित्य नई वस्तु की तलाश क्यों है?
मालूम है उसे जीवन की सच्चाई,
फिर अनैतिक कर्मों में विश्वास क्यों है?
जल गई घमण्ड की रस्सी मगर,
उसकी ऐंठन का अबतक एहसास क्यों है?
वो ज़िंदादिल नहीं, ज़िंदा है केवल,
फिर महान व्यक्तित्व बनने का प्रयास क्यों है?
बीती नहीं उम्र गृहस्थी की,
दिनचर्या में अभी से सन्यास क्यों है?
जिन संस्कारों, शिष्टाचारों से दुनिया बढ़ी,
आज वही उसके लिए बकवास क्यों है?
सोचे-विचारे 'विनय' हर दिन,
इंसान-इंसान में इतनी खटास क्यों है?