मेरा बचपन  रोशन "अनुनाद"

मेरा बचपन

रोशन "अनुनाद"

तुम्हे देख कर
बचपन याद आता है,
तुम्हारा बचपन,
अपना बचपन,
कैसा बचपन
था वो बचपन।
नंगे पैर, फटी पैन्ट,
घुटनों पर और नितम्बों पर भी
पैबंद लगा कर भी फटी पैन्ट
कमीज़ का कालर
कुछ उधड़ चुका, कुछ मैला,
इसलिए कि कमीज धुली नहीं,
कमीज इसलिए नहीं धुली 
कि पहनेंगे क्या।
इक झोला,उसमे कुछ किताबें,
कुछ झोला फटा, कुछ किताबें,
बेतरतीब ,बाहर निकलने को आतुर,
ठण्ड से फटे होंठ भी, हाथ भी,
पैरों में बिवाइयां पड़ी, नंगे ठन्डे पैर।
पहाड़ी ठण्ड,
ओंस नहीं पाले वाली ठण्ड।


पैदल स्कूल, दूर, काफी दूर का स्कूल,
पथरीला,उलटे नुकीले पत्थर,
उतार वाला रास्ता,रास्ते में कांटे
करौंदे, बेर के, झाड़ियों के कांटे,
करौंदे, बेर खाने को आतुर,
स्कूल बंद होते ही,दौड़ लगा कर,
कभी एड़ी में कभी घुटने में चोट।


घर पहुचनें की जल्दी,
अभी माँ जंगल से नहीं आई,
सर्द शाम, बर्फीली हवाओं वाली सर्द शाम।
धारे से पानी लाना है, कंधे पर गागर
सर्द हो गए बेंट वाली कुल्हाड़ी से
लकड़ी फाड़ कर चूल्हे को तैयार करना है,
थकी हारी माँ भैंस दुहेगी,
थोडा मक्खन,कोदो की रोटी,
खिलायेगी, मुझको, भाइयों को
बोलेगी आज ज्यादा थक गई हूँ,
खाने का मन नहीं,
तब समझ नहीं थी,
रोटी तो बची ही नहीं, खाएगी कहाँ से,
अब वो वक़्त नहीं
वो लाचारी नहीं पर
माँ की वो अपना पेट काट कर
हमें जिन्दा रखने की लाचारी
आज भी याद है।

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