आंसू Devendra Raj Suthar
आंसू
Devendra Raj Sutharजब ग़म की बदरा,
हृदय आकाश पर छाए,
जब दर्द को भी दर्द के मारे,
दर्द होने लग जाए,
तब ये आंसू रुक ना पाएँ।
जब कई दिनों से हो पेट खाली,
भूख का आतंक सताए,
जब सारे रास्ते हो बंद,
आशा का सूरज भी डूब जाए,
तब ये आंसू रुक ना पाएँ।
जब मुसीबत की हो घड़ी,
अपने भी दगा कर जाएँ,
जब कुछ न सूझे और आंखों के आगे,
धुंध का कोहराम छाए,
तब ये आंसू रुक ना पाएँ।
जब हर रात हो अमावस्या,
और कदम-कदम पर मिलें ठोकरे,
जब हौसलों की भी सांस टूट जाए,
जिल्लत भरी ये जिंदगानी,
जब नित नया तांडव मचाए,
तब ये आंसू रुक ना पाएँ।