भूख  Shikha  Kumari Upadhyay

भूख

Shikha  Kumari Upadhyay

मैं वो लालच हूँ जिसको
हर मन में तू कहीं न कहीं पाएगा
हूँ भूख नाम की वो बीमारी
कैसे इस जग से मुझे तू मिटाएगा।
 

कर ले दिल के दरवाज़े बंद
और कर ले तू लाख जतन
ना मिटा मेरा अस्तित्व ना मिट पाएगा
इस प्राणी जगत के हर मन में
मेरा अंकुर तूझे दिख जाएगा।
 

रोटी, कपड़ा और मकान
यहीं तक थी मेरी पहचान
अब आगे बढ़ आया हूँ हद से
ना तौल मुझे तू अपने कद से।
 

तू देख है भूख कुर्सी की
तू देख है भूख स्त्री की
तू देख है भूख झूठी शान की
है भूख बिकते इमान की।
 

मेरी भूख से नही कोई बच पाया है
हर इसांन का इमान मैंने हिलाया है।
समझ लेना फर्क बस मुझमें इतना है
कहीं ज़रुरत की सत्यता मे पल जाता हूँ
तो कहीं लालच के तराज़ू मे तौल दिया जाता हूँ।

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