माँ  रोशन "अनुनाद"

माँ

रोशन "अनुनाद"

खुरदुरे,सख्त हाथों से,
बालों को सहलाना याद है,
पकड़ कर जबर्दस्ती, नहलाना याद है।
 

शरारत करने पर, 
पीठ पर मारना,
फिर सहलाना याद है,
रोने पर, नाराज होने पर,
लोरी से मन बहलाना याद है।
 

अंदर आ, तपती धूप मे क्यूँ खड़ा है,
जागा नहीं,अभी तक सोया पड़ा है।
बड़ा हो गया तुझे अक्ल कब आएगी,
बेरहम है दुनिया,तुझको खा जाएगी।
 

कितनी नसीहत, कितनी चिंता 
मेरे लिए तू करती है,
मुझसे ही होती गुस्सा 
और मुझसे ही तू डरती है।
 

बड़ा हो गया, पिता बन गया,
ऐसा तू क्यूँ कहता है,
बच्चा तो मां के लिए
सदा ही बच्चा रहता है।
 

उम्र से पहले बूढी हो गयी,
बीमार जब तब रहती है,
मुझे क्या हुआ,मैं ठीक हूँ,
जब पूछो, तब कहती है।
 

मुझको जन्मा, मुझे संवारा,
मेरी एक पहचान है,
पत्थर को हीरा कर डाला,
इससे तू अनजान है।
 

कहती है मुझको पर,
तू खुद बड़ी नादान है,
मैं तेरी कोख से जन्मा,
इसका मुझे अभिमान है।
 

आज न जाने क्यों माँ
तू ज्यादा अपनी लगती है,
तेरा स्नेह पाने को 
जाने क्यों
सूनी आँखे जगती है।

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