मजदूर Navneet Pandey
मजदूर
Navneet Pandeyजिसे मिला न स्नेह विरासत स्वेद दे गयी,
जिसे न खुद से नेह विवशता पेट दे गयी,
कभी न जग कर्ता से जो शिकायत करता है,
वो तो एक मजदूर है मजदूरी करता है।
उसे बसंती राग न जाने क्यों नहीं भाते,
महलों के सपने भी उसको क्यों नहीं आते,
रक्त स्वेद के गारे से जो जग गढ़ता है,
वो तो एक मजदूर है मजदूरी करता है।
चढ़ी ज्येष्ठ की धूप जिसे छाया देती है,
शीतलहर में उष्ण जिसे काया देती है,
सावन को जो स्वेद मिलाकर धन्य करता है,
वो तो एक मजदूर है मजदूरी करता है।
जिसके हाथो बनी गगनीय अट्टालिकाएं,
जिसपर चढ़कर शुद्र रूद्र को आँख दिखाए,
विश्वकर्मा कहलाने का जो हक़ रखता है,
वो तो एक मजदूर है मजदूरी करता है I