मेरे कॉलर में काई है! Mritunjay Singh
मेरे कॉलर में काई है!
Mritunjay Singhहूँ गरीब ! मेरे कॉलर में काई है,
इमदाद में मुँह बाए , मैंने ताउम्र बिताई है ।
गर्दन काला नही मेरा ,
फिएट और फॉर्च्यूनर के धुंवे से यह जम आइ है ।
निर्मा की मनरेगा नही कर पाई,
यह क्या सफाई है ।
हुजूर आज भी मेरे कॉलर में काई है ।
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लोगों को इतना गरीब नहीं होने देना चाहिये कि उनके रहन सहन से घिन आने लगे और सामाजिक भेद भाव हो, यह चिंतनीय है की तमाम जनकल्याणकारी योजनाओं के बावजूद भी वह एक समानता आधारित समाज की स्थापना के लिए ताउम्र गुहार लगता रहता है, उसके आगे बढ़ने के हर अवसर को साधन संपन्न लोग कुचल देते हैं , यह वो संपन्न लोग हैं जिनके स्वार्थी सोच ने समाज में दरिद्रता को बढ़ाया है ।