बेटियाँ  रोशन "अनुनाद"

बेटियाँ

रोशन "अनुनाद"

आज मुझे
बात करनी है,
अपनी बेटियों से,
अपने मन की बात।
 

कैसे बिना उनके,
अलग रहना
बहुत चाह कर भी
कुछ न कहना,
न चाहते हुए भी
आंसू निर्झर बहना,
उसने क्या खाया,
इसने क्या पहना।
 

कितनी चिंता
कितनी फिक्र,
जब भी कहीं
होता जिक्र,
उनको देखने,
उनकी आवाज़
सुनने की ललक,
देखूँ उन्हें अपलक,
मिल जाती जो
एक झलक,
देखता उन्हें
दूर तलक,
दूर जहां
हो छितिज,
हो फलक,
जगाती मेरे
नाम की
अलख,
फैलाती रौशनी
दूर तलक।
 

अकारण नहीं है ये दूरी,
जीवन में ये भी जरूरी,
करने को हर ख्वाहिश पूरी,
दूर रहना भी मजबूरी,
बड़ी बेटी,
मेरा बहिर्मन,
कम बोलती,
खुद में चुपचाप,
दुनिया को परखती,
अपने विचारों से,
छोटी मेरा अंतर्मन,
खिलंदड़,बेलौस,
दुनियाँ अपनी मुठ्ठी में
करने को व्यग्र,
उतावली,
दोनों मैं ही तो हूँ,
समग्र
दोनों में
छुपा, ढका,
खुद का सखा,
कुछ तो
बयाँ कर सका।
 

मेरी बेटियां
अमरता मेरी,
मेरा विस्तार,
मेरा सपनीला
सुंदर संसार।

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