मेरी परछाई  VINAY KUMAR PRAJAPATI

मेरी परछाई

VINAY KUMAR PRAJAPATI

रोशनी मे वह आाती है,
अंधेरे में खो जाती है।
कुछ कहना चाहती है,
पर कह ना पाती है।
याद वह फिर से आई,
मेरी परछाई-मेरी परछाई।
 

सत्य की बुनियाद है रोशनी,
डर का वजूद है अंधेरा।
रोशनी मे दिखो सत्य कि तरह,
अंधेरे में भगाओ डर को मेरी तरह।
अब समझ मे आया क्या कहती आई,
मेरी परछाई-मेरी परछाई।
 

रोया था जब गम में,
हँसा था जब हर्ष में।
पथ की उस रोशनी मे,
जीवन के दो-राहे में,
डगमगाने ना दिया हौसला मेरा,
बन गया वह साथी मेरा 
मेरा साथ छोड़ ना पाई,
मेरी परछाई-मेरी परछाई।
 

गिरकर उठना मुझे सिखाया,
कुछ बनने का जज़्बा जगाया।
सूरज की रोशनी में वह आए,
जलधर लगते ही खो जाए।
कैसे मुझे जीना सिखाए,
दिनचर्या का पाठ पढ़ाए,
जीवन मे वह फिर से छाई,
मेरी परछाई-मेरी परछाई।

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