बेशक़ीमती होते हैं ये आँसू Rahul Kumar Ranjan
बेशक़ीमती होते हैं ये आँसू
Rahul Kumar Ranjanहक भी नहीं दिखा सकता है
ज्यादा प्यार भी नहीं जता सकता है
अनमोल आँसुओं पर
समन्दर कही जाने वाली ये आँखें ।
हाँ, बस मन ही मन उतार लेता है कंठ के नीचे
पलकों को मींच कर
उन आँसुओं को बिछ़डने से पहले
क्योंकि वो डरता है ऐसा कुछ होने से ।
क्या आँसू नाराज़ होते हैं आँखों से ?
नहीं, नाराज़ वो नाराज़ नहीं होते !
केवल और केवल बाह्य कारण ।
इसलिये वो डरते हैं।
पलकों से उतर आने वाली बेश़कीमती बूँदों के जाने से ।
लोग कहते हैं, ये कभी ना सूखने वाली समुन्द्र हैं
जी नहीं जनाब! ये भी सूख जाते हैं
और पसर जाते हैं सुखार अधरों की जमीन पर
फिर धीरे-धीरे पटाक्षेप हो जाता है मुस्कुराता हुआ दृश्य दीन पर
अपनों के अपने होने तक और वक्त के अंतराल में ।