पहचान  Rishabh S Sthapak

पहचान

Rishabh S Sthapak

भूख की पीड़ा को सहता गया,
कर्म के मर्म को स्पर्श करता गया,
मै हूँ "किसान"।
 

अन्नदाता की पदवी को ढोता गया,
क्षुधित बेटी को पुचकारता गया,
मै हूँ "किसान"।
 

आधुनिकीकरण की बलि चढ़ता गया,
जमीन में सीमेंट के जंगल बोता गया,
मैं हूँ "किसान"।
 

दामाद को खरीदता गया,
बेटे को बेचता गया,
मै हूँ "किसान"।
 

दवाइयों के कर्ज से दबता गया,
यूरिया की लाइन में मरता गया,
मै हूँ "किसान"।
 

खुद को प्यासा रखता गया,
जलाभिषेक करता गया,
मै हूँ "किसान"।
 

विकास की दौड़ में छलता गया,
"किसान" से "मजदूर" बनता गया,
मै हूँ .........???

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