माँ Vivek Tariyal
माँ
Vivek Tariyalवात्सल्य का अक्षय भंडार हो,
तुम स्वयं में इक संसार हो,
प्रेरणा हो हम सब के जीवन की,
तुम ईश्वर कृति निर्विकार हो।
अनुपमेय है त्याग तुम्हारा
सर्वस्व है तुमने हमपर वारा
निज ह्रदय स्वप्न मंजरियों को
हमारी इच्छाओं पर है हारा।
निजता कैसे तुमपर कभी न हावी हो पाई,
बतलाओ हे देवी इतना ममत्व कहाँ से हो लाई?
तुम अप्रतिम स्रोत हो ऊर्जा की,
महिमा चहुँ ओर तुम्हारी है छाई।
करुणा तुम्हारा आभूषण है,
दृढ़ कठोर तुम्हारा अंतर्मन है,
भावनाओं की हो तुम गंगा,
तुममे यह कैसा अद्भुत संगम है।
पाहन सम कठोर हो तुम,
पुष्प सम कोमल हो तुम,
सतीत्व तुम्हारा जग प्रसिद्द है,
जिसके समक्ष झुक गए थे यम।
प्रेरणा की तुम हो सागर
तुमसे ही घर गाँव नगर,
प्रेम की निश्छल प्रतिमा हो,
धैर्य का तुम हो भवसागर।
संसार तुम्हारा ऋणी है माता,
तुम ही तो हो विनय प्रदाता,
मानवीकरण हो सत्य का तुम,
तुम हो इस जग की भाग्य विधाता।
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माँ ईश्वर की वो निर्विकार कृति है जो जितनी करुणा से भरी हुई है उतनी ही कठोर भी है। बच्चे की रक्षा में प्राण दे सकने वाली माँ उसकी रक्षा में प्राण लेना भी जानती है। माँ परस्पर विरोधी गुणों का वो अद्भुत संगम है जिसकी करुणा, ममता और धैर्य की गहराई को ईश्वर भी माप नहीं सकता। यह कविता परमपिता परमेश्वर की इस विलक्षण कृति को समर्पित है।