मज़दूर Arjit Pandey
मज़दूर
Arjit Pandeyमज़दूर हम भी हैं किताबो के
मानसिक श्रम के
मज़दूर तुम भी हो जमाने के
शारीरिक श्रम के
मुझमे और तुममे एक अंतर
तुम गर्मी में पसीना बहाते
कर्तव्य से विचलित नहीं होते
करते हो श्रम निरंतर
मैं मानसिक श्रम से
बड़ी जल्दी थक जाता हूँ
विचलित होकर भटकता हूँ
जब टूट जाता है मेरे
सब्र का बाँध
झूल जाता हूँ फंदे पर
मौत को साथी बना
और तुम अपनी थकान को
अपना साहस बना धैर्य रख
लड़ते रहते हो
हर मुश्किल हालात से।