साहब..मैं कुत्ता हूँ  SONIT BOPCHE

साहब..मैं कुत्ता हूँ

SONIT BOPCHE

साहब..मैं कुत्ता हूँ
अपनी जात का आदमी सूँघ लेता हूँ
फिर हम मंडलियों में भौंकते हैं
जिसकी भौंक जितनी ऊँची
उसकी जात का उतना रुतबा
और हम यूँ ही भौंकते रहते हैं
कभी किसी वजह से
पर अक्सर बेवजह ही।
 

पर रात के मनहूस अंधेरों में
कुछ चहलकदमी सी होती है
ख़ामोशी के चेहरे पर
खून के छींटे पड़ते हैं
और तब जो चीखें उठती हैं,
वो हर जात की होती हैं।
 

सुना है दूर उस जंगल में
चंद भेड़िये रहते हैं
और ये भी कि
उनकी जात नहीं होती।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
1712
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com