हमारा शिक्षक कैसा हो ? Utkarsh Tripathi
हमारा शिक्षक कैसा हो ?
Utkarsh Tripathiपत्थर के टुकड़ों को कोहिनूर बनाने वाला हो,
स्व शिल्प से राष्ट्र् की नव मूर्ति बनाने वाला हो।
युवाओं की दशा को जो फिर से दिशा दे सके,
देश की दुखती पीड़ा को जो अंतर्मन से छू सके।
दिग्भ्रमित राष्ट्र को जो पथ की पहचान करा पाए
बन चुके दानवों को जो फिर इंसान बना पाए ।
राष्ट्र के युवाओं में नव स्फूर्ति जगाने वाला हो
स्व शिल्प से राष्ट्र की, नव मूर्ति बनाने वाला हो।
स्वस्थ युवक से सबल राष्ट्र का चित्र उकेर जो सकता हो
कंकर बालू पत्थर से, बना सुमेर जो सकता हो।
पतन पराभव की बयार में ज्योति जलाए जो आशा की
घटा सके दूरियाँ धर्म की, जाति, क्षेत्र और भाषा की।
घृणित माहौल में भी जो, नव प्रीति जगाने वाला हो,
स्व शिल्प से राष्ट्र की, नव मूर्ति बनाने वाला हो।
प्रेम पिता सा दे सके वो, अनुशासन गुरु सा सिखलाये
माता सा दुलार करे वो, जीवन में सत्पथ दिखलाये।
लेखनी से क्रांति मचा दे, वाणी से जनभ्रान्ति मिटा दे
सो चुके पार्थों के अंदर, रणभेरी बजाने वाला हो।
स्व शिल्प से राष्ट्र की, नव मूर्ति बनाने वाला हो।।
कृषकों के तृषित अधरों पर मुस्कान की रेखा खींच सके
मूर्छित पड़े भारत को पुरुषार्थ की धारा से सींच सके,
जिसके निर्देशों का वरण सुख संयम लेने वाला हो,
स्व शिल्प से राष्ट्र की, नव मूर्ति बनाने वाला हो।
गुरुता का अवतार हो वो, क्रांति का विचार हो वो,
रूप समर्पित सेनानी का, गुरु गोविन्द सिंह अवतार हो वो
बंजर धरती के सीने पर भी वृक्ष उगाने वाला हो
स्व शिल्प से राष्ट्र की नवमूर्ति बनाने वाला हो।
पानी में आग लगा सकता हो, रजनी प्रभात बना सकता हो
दुःख के कुहाशे को चीर-चीर कर, नव प्रकाश दिखा सकता हो,
प्रखर प्रज्ञा को राष्ट्र की निधि बताने वाला हो
स्व शिल्प से राष्ट्र की नव मूर्ति बनाने वाला हो।