इश्क़ लिखते हो इंकलाब लिखा जाता है ? Utkarsh Tripathi
इश्क़ लिखते हो इंकलाब लिखा जाता है ?
Utkarsh Tripathiइश्क़ लिखते हो, इंकलाब बन जाता है,
मेरा तो राष्ट्रपरक हर निबन्ध एक ख्वाब बन जाता है,
और आप कहते हो,
इश्क़ लिखते हो,इंकलाब बन जाता है....
मैंने भी देखा है,आतंकियों के शव के पीछे जनसैलाब बन जाता है
क्षण भर की सफलता से ही साहित्यकार नवाब बन जाता है
और आप कहते हो,
इश्क़ लिखता हूँ...........
मैंने परखा है;
राष्ट्र विरोध करने वाला छात्र एक खिताब बन जाता है,
हर एक छोटा सा मुद्दा देश में किताब बन जाता है,
और आप कहते हो,
इश्क़ लिखता हूँ.........
राजनीति में नमस्कार भी अब तो आदाब बन जाता है,
देश में छोटा सा शोला भी,जलता हुआ आफ़ताब बन जाता है
देखता हूँ धर्म-जाति के नाम पर ही उन्माद बन जाता है,
और क्या कहते हो आप,
इश्क़ लिखता हूँ,इंकलाब बन जाता है।।।
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एक बार किसी कवि की कुछ पंक्तियाँ जो इस तरह थीं कि "इश्क़ लिखता हूँ तो भी इंकलाब लिख जाता है", मैंने सुनी। आज के परिदृश्य में जब अधिकतर कलम गिरवी रखी जा चुकी है, देश का वर्तमान भूत की दुहाई दे रहा है! ऐसी पंक्तियाँ बनावटी लगती हैं ।"दिनकर" और "रामनरेश" जी जैसे कवियों का अकाल पड़ गया है। ऐसे में तीन माह पहले मैंने अपना प्रथम व्यंग्य काव्य लिखने का प्रयास किया।