अब नया संकल्प लें  शशांक दुबे

अब नया संकल्प लें

शशांक दुबे

अब न हम विकल्प लें।
नित नया संकल्प लें।।
 

वसुधा है बंजर सी, न अब कानन घने हैं
झुलसे है शेष वृक्ष, लगते अनमने हैं।।
न बरगद पीपल है, न वह छाँव घनी है।
मरूस्थल से गाँव हैं, फैली सनसनी है।।
वृक्ष लगाना ही है अब
क्यों न मन में ठान लें.......
नित नया संकल्प लें........
अब न हम विकल्प लें।
 

धूल धुंआ शोर से, पटा हुआ शहर
प्रदूषण है ढा रहा, नित्य ही कहर
यत्र तत्र कचरा, पॉलीथीन हैं पटे
मच्छर और मक्खियाँ, खाने से सटे
स्वच्छता लाना ही है अब
क्यों न मन में ठान लें.......
नित नया संकल्प लें........
अब न हम विकल्प लें।
 

शादियों का बचा, खाना है पड़ा
एक बेटा गरीब का, भूखा है खड़ा।
बना रहे व्यंजन, छप्पन प्रकार के
फेंक रहे खाना, बच्चों को मार के
अन्न बचाना ही है अब
क्यों न मन में ठान लें......
नित नया संकल्प लें.......
अब न हम विकल्प लें।
 

सूखी पड़ी है नदियाँ, रीते तालाब हैं।
सूखा है भू जल, दुःख का सैलाब है।
प्यासी है आधी दुनिया, प्यासे वे लोग हैं।
जिनको मिला प्रचुर, करते दुरूपयोग हैं।
पानी बचाना ही है अब
क्यों न मन में ठान लें......
नित नया संकल्प लें.......
अब न हम विकल्प लें।

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