मंज़िल का एहसास  VINAY KUMAR PRAJAPATI

मंज़िल का एहसास

VINAY KUMAR PRAJAPATI

पवन के झोंके पेड़ को हिलाके,
कुछ कह जाते हैं ख्वाबों मे आके,
दूर एक समंदर है लहरों का घर है,
अंधेरे मे हम खो न जाएँ इसी का डर है।
पर्वत की चढ़ाई से भी कठिन हैं जीवन की राहें,
ज़िन्दगी मे वह मुश्किल से मिले जिसे हम चाहें,
कुछ विघ्नो को झेलकर न खोना साहस कभी,
जीवन की इस राह मे न लेना विश्राम कभी,
पवन की बाँहों मे बहे चलो इन फ़िज़ाओं में,
मुश्किलें तो आती रहती है मंज़िल कि इन राहों  में।
जीवन की इस यात्रा मे निशाचरों का साथ है,
मंज़िल से हम हटेंगे नहीं दिशासूचक यह रात है,
कोई परछाई ऐसी है जो साथ हमारे चलती है,
अगर जो आए गम हम पर वह अपने ऊपर लेती है,
न जाने वह कौन है किसकी है वह छाया,
दूर तो उसका एहसास है पर पास नज़र वह आया।
नदी की इस धारा ने हँसकर मुझसे यह कहाँ,
मेरी मंजिल तो है सागर पर तेरी मंजिल है कहा,
मंज़िल तो पास है इसका हमे विश्वास है,
कुछ कदम बस दूर है ऐसा हो रहा एहसास है,
पवन की आहट ने दिल में दस्तक दे जाती है,
आने वाला है सवेरा यह कह जाती है,
सूरज की रोशनी ने अंधेरे को भगा दिया,
मंज़िल के एहसास को हकीकत बना दिया,
जीवन की लहरों को मैने पार कर लिया,
थाम के हाथ मंज़िल का उसके साथ चल दिया।

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