अधूरी बातें VINAY KUMAR PRAJAPATI
अधूरी बातें
VINAY KUMAR PRAJAPATIदौड़ के देखा बहुत मैने,
अब रूकना भी जरूरी है।
खामोश यूँ कब तक रहूँ,
कुछ कहना भी ज़रूरी है।
लब्ज़ उन्हे फिर बोलना चाहें,
जो बातें अधूरी हैं।
जो सपने देख रही हैं आँखे,
उनसे कितनी दूरी है।
पास मेरे तो कुछ नही है,
बस खाली एक झोली है।
दिल उन्हे फिर सुनना चाहे,
जो बातें अधूरी हैं।
राज़ तो बहुत छिपे हैं मन मे,
कुछ अधूरी कुछ पूरी हैं।
सपनो की पतंग उड़ेगी फिर,
से हाथ मे जिसकी डोरी है।
पढ़ने उन्हे फिर चला हूँ,
जो बातें अधूरी हैं।
नीले गगन मे छा गई है,
सूरज की सिंदूरी है।
पवन के झोंके वृक्षों के संग,
गा रहे एक लोरी हैं।
जिज्ञासा मेरी अब जानना चाहे,
जो बातें अधूरी हैं।