तन्हाइयों का सफर VINAY KUMAR PRAJAPATI
तन्हाइयों का सफर
VINAY KUMAR PRAJAPATIरात का वक्त था, कँधे पर बैग था।
ठंड का मौसम था,
तन्हाइयों का सफर था।
मै चलते-चलते कहीं खो गया,
चाँद तारों ने कहा मैं लापता हो गया।
दूर एक रोशनी दिखी,
मुझे लगा उम्मीद की किरण दिखी।
बर्फ पड़ने लगी थी,
रात हँसने लगी थी।
रोशनी तक पहुँच चुका था,
अपनी मंजिल तय कर चुका था।
बर्फ से ढका घर था,
मद्धम रोशनी का वह पल था।
तन्हाइयों के वक्त में,
मै गया उस घर में।
रात बिता सवेरा आया,
उम्मीद की एक किरण लाया।
फूल खिल रहे थे,
चिड़िया चह-चहा रही थी।
तन्हाइयों के सफर मे,
मै निकल पड़ा उस पल में।
चारों तरफ हरियाली थी,
कहीं बर्फ तो कही फूलों कि वादी थी।
नदियों का कल-कल, झरनों का झर-झर।
मन को आनंदित करता है,
वह तन्हाइयों का सफर।