अधूरा सफर  Rahul Kumar Mishra

अधूरा सफर

Rahul Kumar Mishra

कभी कभी ज़िन्दगी में, कुछ ऐसे मोड़ आ जाते हैं।
जब अनजानी राहों पर, कुछ अनजाने मिल जाते हैं।।
 

बसते हैं ऐसे वो दिल में, जैसे सांसे बस जाती हैं।
वो तो छोड़ चले जाते हैं, बस यादें ही रह जाती हैं।।
 

उठती है दिल मे एक तरंग, कैसे इस दिल को समझाएँ।
छत से जब देखूँ चाँद कभी, वो चाँद में हमें नज़र आएँ ।।
 

करता हूँ बंद आँखे अपनी, जिससे वो चाँद ना दिख जाए।
तन की आँखे हो जाएँ बंद, वो मन की आंखों से नज़र आएँ।।
 

मैंने कहा ऐ दिल भूल जा उसको, वो तो था राही अनजाना।
खुद को तो समझाया हमने, पर इस दिल ने ना माना।।
 

आखिर कैसे मान जाता ये दिल, वो दिल के अंदर आई थी।
दिल को समझाना था मुश्किल, दिल ने ही चोटें खाई थीं।।
 

हुआ कुछ यूँ ही मेरे साथ, जब वो मुझसे टकराई थी।
प्रयागराज की पवित्र ज़मीं पर, वो दिल के अंदर आई थी।।
 

कुछ बातें हुईं, कुछ मज़े हुए, हमने दिल को समझाया था।
क्या खोया हमने याद नहीं, अनजाना साथी पाया था।।
 

बातों में थे हम उलझ गए, लिए मन में एक नया अंदाज़।
सारी आशाएँ टूट गयीं, जब ए.जे की आई आवाज़।।
 

फिर जाने को तैयार हुआ, मैं लेकर बैग दुखी मन से।
तन से तो बैठा ए.जे में, पर भटक रहा कहीं मन से।।
 

गाड़ी ने चलना शुरू किया, हम खुद को रोक तो पाए थे।
पर कैसे रोकूँ आँखों को, आँसू जिनसे बह आए थे।।
 

फिर सोचा यूँ ही कुछ लिख लूँ, जिससे ये दिल अब बहल जाए।
जब खोला कॉपी को अपने, चेहरा बस उनका नज़र आए।।
 

नज़रों से मोहब्बत होती है, नज़रें ही गम को पाती हैं।
नज़रों की दास्तां क्या कहिए, नज़रें सब कुछ कह जाती हैं।।
 

फिर आँखे बंद कर सो गया, देखा सुंदर उनका सपना।
जब आँख खुली तो चौंक गया, आया था स्टेशन अपना।।

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