इक्कीस मैं  dik jajo

इक्कीस मैं

dik jajo

लहरों को काटने से नहीं मैं भागती,
सितारों के फटने से नाचती मैं नहीं,
गुबबारे के पिचकने पे रोती नहीं मैं,
इक्कीसवीं सदी की हूँ नारी मैं !
 

हलचल होने पर मैं घबराती नहीं,
चमकती नहीं मैं आग बरसने पर,
छुए रौशनी सर,तन को, मैं नहीं उठती,
अंधेरी रात हो, तारे गिनती मैं नहीं,
इक्कीसवीं सदी की हूँ नारी मैं !
 

कहे अनजान, परखती मैं नहीं,
जान छुप रहे, मैं होती उदास,
झंडा के जय होये, मैं नाचे नहीं मानती,
इक्कीसवीं सदी की हूँ नारी मैं !

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