वक़्त के साथ इंसान बदल जाते हैं  Rohit Kumar Gupta

वक़्त के साथ इंसान बदल जाते हैं

Rohit Kumar Gupta

एक हौसला था खुद के अंदर जिनकी बातों से,
रूठे कदमों को भी मोड़ लेते वो अपने जज्बातों से,
करते थे जो बेपनाह मोहब्बत वो अपनों के संग,
सारे गम भुला देते थे जैसे किसी सपनों के संग,
उन सपनों मे वो एक सच्चा मुकाम लिए फिरते थे,
अपनों की मुस्कुराहट को जैसे सरताज लिए फिरते थे,
उनकी मुस्कान के अब हर एक अल्फ़ाज़ बदल जाते है।
वक़्त के साथ इंसान बदज जाते हैं।।
 

करते थे जो कभी हिफाज़त अपने अपनों की,
उनके ख्वाबों के परिंदों और उनके सपनों की,
कंधों पर बिठाकर जिसको सारी दुनिया घुमाया करते थे,
जिसपर हर एक पल की हर एक खुशियाँ लुटाया करते थे
जिसके लिए वो दुनिया की सोच बदलने निकले थे,
उसके ख्वाबों की पतंगों की वो एक डोर लिए निकले थे,
रहता था जो कभी शान से अपनों के नाम पर,
उस शख़्स के आज हर एक पहचान बदल जाते है।
वक़्त के साथ इंसान बदल जाते हैं।।
 

वो नन्हा बचपन भी कितना प्यारा था,
ना जिम्मेदारियों की फिक्र,
बस अपनों का सहारा था,
कहाँ आ गए हम समझदारी की दुनिया में,
लोगों के झूठे विश्वास और इस साझेदारी की दुनिया में,
जिस घर के आँगन में सच सुनाई देते थे,
उस दर्पण में मासूमियत के कुछ रंग दिखाई देते थे,
गूंज उठती थी किलकारियों की आवाज़ जिसकी हर एक दीवार में,
उस दीवार से बना हर एक वो मकान बदल जाते हैं।
वक़्त के साथ इंसान बदल जाते हैं।।

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