सुकमा हमला  shivam singh

सुकमा हमला

shivam singh

क्या अब भी समझौता करना?
क्या अब भी ये हमला सहना?
ये लोकतंत्र का कहना है,
भुजबल को भुज बिन रखना है,
ये बागडोर क्यों रखना है,
सब बिन बोले जब सहना है।
 

क्या पराधीन की बेड़ियों से जकड़े अब भी रहना है?
क्या कायरता की बातों से सब जन की लोभित करना है?
नेता सुभाष, वल्लभ पटेल की बातो का हुंकार भरो,
कर्तव्यविमुख ना होकर तुम क्रांति के मार्ग को प्रशस्त करो।
 

ऐ लोकतंत्र के राजाओं! अब से भी तुम कुछ दिखलाओ,
भारत जैसे उत्कृष्ट राष्ट्र को गीदड सा ना बनवाओ,
आतंक जहां पर होता है, वो राष्ट्र समूचा रोता है,
उसकी अब तो परवाह करो, उठकर अब तुम संहार करो।
 

मद्रास,बंबई,काशी,बिहार सबने आतंक को देखा है,
सुकमा वासी ने पहली दफे ऐसा विध्वंसक देखा है,
वो ज़हर उगलता हुआ काफिला कई शीश को भेद गया,
माओवादी नाम सुनाकर कई जिस्म को छेद गया।
 

ये सिंदूर मांग का चला गया,
हमें श्वेत वस्त्र मे लिपटा गया,
मैं कसम अब से खाती हूँ, क्रांति की आग सुलगाती हूँ,
नारी शक्ति क्या होती है,इसका परिचय करवाती हूँ।
 

अब शायद भाग्य उदय होगा,
जब राष्ट्र का बच्चा-बच्चा भी आतंक के आगे उदित होगा।

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