राहगीर  Rishabh S Sthapak

राहगीर

Rishabh S Sthapak

मंज़िल को दृष्टि में रखता
सजग राहों में गिरता चलता
 

खुशियाँ देता गम को सहता
आँधी तूफानों में निश्चल चलता
 

छलता-छलता छलते जाता
पाते-खोते चलते जाता
 

प्यासा होकर प्यास बुझाता
धोखों के ईंधन को खाता
 

मंज़िल को पाने राहों को टेरता
मृगतृष्णा को मंज़िल माने चलता
"राहगीर"
 

मंज़िल को सफर का अंत न माने
अंत की मंज़िल की ओर चलता
"राहगीर"।

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