कवि-मन गीत शुभम त्रिपाठी
कवि-मन गीत
शुभम त्रिपाठीयह दिल भी खाली,
जेब भी खाली,
आकर दो पल रह ले कोई,
फिर दे जाए किराया।
इस गरीबी में बरबस जीता,
हो जाएगा सहारा।
कवि कविता गाए,
सुने-सुनाए।
क्या वह पाए?
वह क्या खाए?
क्या शब्दों से गुजारा!
इस गरीबी में बरबस जीता,
हो जाएगा सहारा।
कवि-मन प्रेम का भूखा!
कवि है पेट से भूखा!
प्रेम ना सही,
मिल जाए रोटी,
सूखा संग छुआरा!
इस गरीबी में बरबस जीता,
हो जाएगा सहारा।
यह दिल भी खाली,
जेब भी खाली,
दो आखर बस कह दे कोई,
प्रशस्ति-गान किराया!
यह गरीबी मैं सुख में जीता,
कविता एक सहारा!