शुभकामनाएँ Rahul Kumar Ranjan
शुभकामनाएँ
Rahul Kumar Ranjanऐ हवा !
सुनो, ज़रा धीरे बहो,
दिशाओं तुम मेरी रहो।
फ़िज़ा तू भी रंगीन रहना,
मधुबन तुम तो मदहीन रहना।
सूरज तुम थोड़ा मद्धम हो जाओ
खग-कुल, तू थोड़ा कलरव कर ले
पनघट, तुम थोड़ा घट भर ले हैं
हैं कुछ लोग फलक से उतरे
उनसे है कुछ बातें कहनी।
माना कि अनजानी सी है वो
पर दिल को तो पहचानी सी है वो
बात-बात पर झगड़ती है
ना जाने किस पर मरती है वो ।
ए तुम्हें पता है बादल
क्या ? नहीं ! कहा तुमने ?
ऐसा मत कहो
जाओ थोड़ा और बहो
वो मिले तो उसे मेरा हाल कहो।
देखो तो कोई आ रही है
हाँ प्यारी बिजली है ।
अब तुम थोड़ा हट जा
बिजलियाँ तुम थोड़ा छट जा।
आ गिरने दे, चमक चाँदनी
तिरने दे तू मधुर रागिनी
बर्फ की नन्हीं रेशों के संग
नभ में भर तू नई उमंग।
बारिश तुम भी बरसो रिमझिम
झींगुर तुम भी गाना झिम झिम
हैं कुछ लोग फलक से उतरे
उनसे है कुछ बातें कहनी।
क्या है इश्क़ उन्हें यारों से
राहों से ,राहगीरों से।
मस्त-मग्न अपनी धुन में
वो हँसते मन की शाहों से
चाँद तू थोड़ा रोशन होकर
उनसे कहना ,हँसते रहना
मेरी सूनी -दुनियाँ में ख्वाबों सा
उनसे कहना बसते रहना
माहों में हो, सावन जैसे
जूही हो , मन- भावन जैसे।
थिरक उठे बच्चों सा मन ये
कातिक-फागुन के पावन जैसे।
हाँ, बस इतना ही।
ज्यादा नहीं, इज़ाज़त तुमको
और हां ! तुम सुनो, ओ सावन !
अब खूब बहो .गाओ-झूमो।
बांध झमाझम बारिश नूपुर
नृत्य कर ,ओ सतरंगी बादल
कहना वो तस्वीरें ले जा
अपनी सुधि कभी तो दे जा
और कहना कोई संदेशा भेजा
वो हँसे-झूमे खूब गाये।
जन्मदिन की शुभकामनायें।
शुभकामनायें ! शुभकामनायें।
अपने विचार साझा करें
जिन दिनों हमरे पास संचार का सटीक साधन नहीं होता होगा। हमारे पास चित्र नहीं होते होंगे। यूँ कहें तो सभ्य मानव आधुनिक नहीं हो पाया था जब, कल्पना कीजिए उन दिनों कितना मुश्किल होता होगा किसी दूर-दराज रह रहे अपनों से अपना विचार साझा करने में। अपने दिल की बात कहने में। ऐसी विषम यदि किसी को प्रेम हो जाए तो और भी मुश्किल और उसमें भी जब एक तरफ़ा झुकाव हो। अकाल्पनिक। विरह -प्रेम। ऐसे वक्त पर एक प्रेमी अपनी प्रेयसी को जन्मदिवस की शुभकामनाएँ भेजता है प्रकृति के अलग-अलग दूतों के जरिये। जिसे इस कविता में सहजता पूर्वक चित्रित किया गया है।