तू ही बता  रोशन "अनुनाद"

तू ही बता

रोशन "अनुनाद"

तू ही बता
काले घने बादल
किसी कमसिन की,
सुंदर जुल्फ हैं,
या किसी मन में
छाई घोर उदासी,
तू ही बता।
 

बादल से गिरती बूँदें,
ज़ुल्फ़ से झरता निर्झर,
या किसी आँख से,
ढुलकते आँसू,
तू ही बता।
 

हवा से लहराती डाली,
नवयौवना का अल्हड़,
या मन में उठती हलचल,
डोलता आत्मविश्वास,
टूटने-बिखरने 
के डर से,
इधर-उधर,
छुपती-सिमटती,
कोई असहाय,
तू ही बता।
 

किसी की कशमकश,
उसकी बेचैनी,
उसकी मुसीबत में,
अपना आनंद,
अपना कवित्व,
ढूंढ़ लेते हो,
कैसा कवि मन है,
तू ही बता।
 

मेरे मन में,
मन की दुनिया में,
कभी कदम
रख कर देखो,
तुम्हारे समझने का,
दुनिया देखने का,
अंदाज़ बदल जाएगा।
 

घटा से बिजली,
बूंद से सैलाब,
झूमती हवा से,
तूफ़ान बनने का,
राज़ तुम समझ पाओगे।
 

तुम्हारी कल्पना के परे,
कोई और भी,
दुनिया है,
जान जाओगे,
अपनी समझ को ही,
सम्पूर्ण मान लेना,
क्या सही है?
तू ही बता।

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