राष्ट्र स्थिति  Utkarsh Tripathi

राष्ट्र स्थिति

Utkarsh Tripathi

कभी था प्रहृष्ट, आज परेशान है भारत,
आज के कुकृत्यों से हैरान है भारत।

इसी भारत ने झेली महाभारत की पीड़ा है,
परंतु आज के भारत में अलग ही संग्राम छिड़ा है।
आज धन विजय कर धनंजय धनेश बनना चाहते हैं,
पूरी भू को जीतकर भूपेश बनना चाहते हैं।
युवाओं से चित्रित है सिर्फ शैतान भारत
कभी था प्रहृष्ट, आज परेशान है भारत।
 

मदिरा तंबाकू की ओर भागते युवा,
बढ़ रहा है क्रेज, सट्टा व जुआ।
हालात यूँ बन रहे हैं कि
एक तरफ घाटी और एक तरफ कुआँ।
विस्मृत कर रहा है, स्व संस्कृति का मूल्य महान ये भारत;
कभी था प्रहृष्ट, आज परेशान है भारत।


मानव ही मानव प्रति दानव बन रहा है,
क्यों नहीं अब कोई लखन या राघव बन रहा है।
कलियुग के प्रचंड दावानल में भारतीय की भारती खो चुकी है;
पार्थों की विवेकता, विनम्रता न जाने कहाँ सो चुकी है।
देखते लोग इसे कहते गृह शमशान है भारत,
कभी था प्रहृष्ट ,आज परेशान है भारत।
 

भारतीय जवान का लहू जल बन गया है;
छिनैती, क़त्ल ,डकैती गरीबी का हल बन गया है,
शोषण ही ईमानदारी का फल बन गया है ;
आज को देख चिंतित कल बन गया है।
व्यसन रूपी खनिज की खदान है भारत;
कभी था प्रहृष्ट,आज परेशान है भारत।
 

कभी इन अलौकिक घाटियों में,
पर्यटनार्थ इन सुरम्य वादियों में,
कोटि-कोटि विदेशियों का आना होता था;
शुभ्र ज्योतिमय उमंगों वाले सवेरे में,
मधुर कोकिल गाना होता था।
बोझ सा अब भारत में रहना हर पल बन गया है,
सुधामय देश अब गरल बन गया है।
हो चुका ये विहीन शान ये भारत;
कभी था प्रहृष्ट ,आज परेशान है भारत।
 

अद्य पतन के मेघ छाने लगे हैं
ये उत्थान के सूर्य पर मंडराने लगे हैं,
अब भारतीय नारद(भक्त) से नारद(चुगलखोर) बन गए हैं ,
अब तो वे दानव दारक(पुत्र) बन गए हैं
धन जय की इच्छा से दूर, धनंजयों को महान बनना होगा
पार्थ जागरण हेतु फिर किसी कृष्ण को गीता वाचन करना होगा
गिरवी रखी कलम छुड़ानी पड़ेगी
क्रांति की बुझी मशाल जलानी पड़ेगी
सदियों से जो करते आये हैं
फिर से कहनी वही कहानी पड़ेगी |
हमें मिली है चुनौती ,करना है नव-निर्माण भारत |
कभी था प्रहृष्ट आज परेशान है भारत ||
 

कविता में वर्णित विचार कवि के अपने विचार हैं। मातृभाषा का उनसे सहमत होना या सम्बन्ध रखना अनिवार्य नहीं है। 

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