प्रेम वंदन FARHAN KHAN
प्रेम वंदन
FARHAN KHANस्वीकार कर वंदन मेरी ऐ प्रेम की अभिलाषिनी,
प्रेम का मै हूँ पुजारी तू है हृदय वासिनी।
तेरी प्रशंसा क्या करूँ तू चंचल मोहिनी कामिनी,
तू मृगनयनी तू चन्द्रमुखी तू ही सपनागामिनी।
प्रेम के जब सुर लगाऊँ तू साथ हो जा रागिनी,
हर जनम ऐसा ही हो मैं पुष्प बनूँ तू चाँदनी।
तू तपस्या मैं तपस्वी, जाग जा देवांगिनी,
अब कह भी दे तथास्तु और बन मेरी अर्द्धांगिनी,
स्वीकार कर वंदन मेरी ऐ प्रेम की अभिलाषिनी।