निंदा FARHAN KHAN
निंदा
FARHAN KHANमैं बिटिया ईश्वर की कृति कोमल हृदय नारी थी
मैं जन्मी तो रूठा बापू ऐसी क्या लाचारी थी।
भेद भाव से पली बढी मैं किसकी जिम्मेदारी थी,
सन्त कहे लक्ष्मी बिटिया को ये तो दुनियादारी थी।
भईया तूने जब जब मारा फिर भी राखी बाँधी थी,
बाबूजी ने जब फटकारा वो स्नेह की आँधी थी।
करूणा से संसार डुबोने मैं दुनिया मे आई थी,
दु:ख सागर मे डूब गई रे फूटी किस्मत पाई थी।
परिवार का बोझ हटाने मैं बुद्धु ससुराल चली थी,
दहेज लोभ के अंगारों में मैं ही वो लाचार जली थी।
पतिदेव का वंश बढ़ाऊँ मैंने कसमें खाई थीं,
जनते जनते मर गई समझो मैं दुष्टों की दाई थी।
स्वाभिमान का गला घोंट के खुद को अब झुठलाई थी,
खबरदार सुधर जा पापी नारी ही लक्ष्मीबाई थी।