ऐसे क्या समझोगे  RAM khilavan

ऐसे क्या समझोगे

RAM khilavan

ऐसे क्या समझोगे जनाब मेरे दर्द के पैमाने को,
मेरा दर्द केवल मेरा नहीं, नूर देता है ये जवानें को।
 

जिस्म के सौदे हैं ज्ञान के मंदिरों में, क़त्ल-ऐ-आम है विद्यालयों में,
इतना ही काफी होना चाहिए जनाब, आपकी बुझी मशाल जलाने को।
 

और ज्यादा बयां करना लफ्जों में लगता है जायज नहीं,
बुलालो कभी महफ़िल में दर्द बहुत है सुनाने को।
 

जिनको दी थी जिम्मेदारी वो ही इनसे मुकर गए,
प्राणवायु की कमी से, मेरे बच्चे मर गए।
 

ऑंखें डबडबा जाती हैं, दिल सहम सा जाता है,
हूँ बड़ा मायूस, मेरे कलाम, बिस्मिल किधर गए?
 

खुशियाँ चुभती हैं मेरे जज्बात-ऐ-जहन को,
क्या करे वो हँसते हुए जवान किसान नही हैं।
 

सब ही खोये हैं मदहोश हैं खयालो की तुरबत में,
किसी को बिगड़ते हिंद के हालात कि खबर तक नहीं है।

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