सलाम ज़िन्दगी Rahul Kumar Mishra
सलाम ज़िन्दगी
Rahul Kumar Mishraज़िन्दगी तेरे रंगों से,
कुछ रंग चुराना बाकी है,
कुछ कर्ज़ हैं बाकी मुझ पर तेरे,
कुछ शर्त निभाना बाकी है।।
जो जिया तेरे आँचल में अब तक,
मैं जीवन के हर लम्हे को।
अब छोड़ के तुझको दूर कहीं,
एक निशां बनाना बाकी है।।
तेरी गलियों की चकाचौंध में,
सब कुछ धुंधला सा लगता है।
अब छोड़ के रोशन गालियाँ तेरी,
एक शमा जलाना बाकी है।।
इक चाह थी तेरी बाहों की,
कि काश तू मुझको अपनाती।
अब जीवन के सूखे कुँए पर,
वो प्यास बुझाना बाकी है।।
अब देखा हूँ सूरत तेरी,
जीवन, मृत्यु के दर्पण में।
बस मोह के इस आईने को,
चेहरे तक लाना बाकी है।।
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ये ज़िन्दगी जो हमें अपनी आगोश में शय देती है, हर कदम पर हमें चलना सिखाती है, कभी-कभी जब हम हार कर चलना भूल जाते हैं तो अपने विभिन्न रंगो से हमें परिचित करा कर मुस्कुराने की वजह देती है और हम बस चलते जाते हैं ज़िन्दगी के कभी ना खत्म होने वाले पथ पर।। शायद हम ये भूल जाते हैं कि जीवन के हर रास्ते पर कभी न कभी कुछ कर चुकाना ही पड़ता है.. और अगर यही कर ज़िन्दगी के रास्ते में चुकाना पड़े तो..?