लड़ना है अपने आप से अंकित कुमार छीपा
लड़ना है अपने आप से
अंकित कुमार छीपाअनभिज्ञ है गंतव्य से, अनजान है जो मार्ग से,
तू है मुसाफ़िर वो, जिसे लड़ना हैं अपने आप से,
आसाँ नहीं है राह यह,
दुर्गम है यह मंजिल मगर,
जो रात यह ढल जायेगी,
होगी तभी स्वर्णिम सहर।
प्रत्येक पग पर पुष्प की,
शैय्या मिलेगी ना यहाँ,
हर बार लहरें कश्तियों का
साथ देगी ना यहाँ।
स्वेद की बौछार से,
तू सींचना इस राह को,
अश्रुओं की धार से,
कलियाँ खिलेगी ना यहाँ।
तू रख कदम इस राह पर, दृढ़ निष्ठा और विश्वास से,
तू है मुसाफ़िर वो जिसे लड़ना हैं अपने आप से।।1।।
हर मोड़ पर घनघोर विपदाएँ
यहाँ टकराएँगी,
प्रतिरोध बनकर सामने,
तेरे खड़ी हो जाएँगी।
ना बैठना भयभीत होकर,
ना गति तू मंद करना,
हर विकट अवरोध से,
निर्भीक होकर द्वन्द करना।
ये राह के कंटक ही तो,
गंतव्य का परिमाण है,
इनके चुभन की त्रास से,
तू न सफ़र का अंत करना।
तू है बना फौलाद का न डर जरा सी फाँस से,
तू हैं मुसाफ़िर वो जिसे लड़ना हैं अपने आप से।।2।।
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परमेश्वर की सबसे सुन्दर कृति हैं, मनुष्य। बुद्धिमान, गुणी एवं शक्तिशाली, तथापि जीवन से असंतुष्ट, दुःखी और निराश। कारण मात्र यह कि वह अपनी बड़ी-बड़ी मनोकामनाओं को पूर्ण करने हेतु सही मार्ग का चयन करने में असमर्थ हैं। कारण मात्र यह है कि वह डरता है। डरता है, गिरने से, भटकने से, असफल होने से। किन्तु यदि सफलता अर्जित करनी है तो इन निराशाओं और असफलताओं से उसे लड़ना होगा। उसे लड़ना होगा; दुनिया से नहीं, अपने आप से।