विदुषी व्यथा Nipun Vashistha
विदुषी व्यथा
Nipun Vashisthaअंकल अब मत टच करो,
अंकल अब मत टच करो,
हद है यार अब तो बस करो।
मैं नहीं चाहती वह प्यार तुम्हारा,
जो रह रहकर के सहलाए,
कोमल छोटे हाथों को,
जबड़ों में न जकड़ा जाए।
जब चाचा के रिश्ते ने ही,
मासूमियत को मार दिया,
यह कलम उठी उद्वेग भाव से,
प्रतिकार को नाम दिया।
जब बच्ची बोली मम्मी से,
मम्मी क्या तुमको बतलाऊँ,
मामा के खिलौनो की क़ीमत,
क्या ज़हन पे अपने दिखलाऊँ।
जब शब्द न रहते कहने को,
आँखें रो-रो थक जाती हैं,
जब रिश्तों के आँचल में ही,
कलियाँ फिर नोची जाती हैं।
जब कोई न रहता कहने को,
मन लाचारी में रोता है,
बच्चा अपनों के बीच भी रहकर,
रात में जगकर सोता है।
मन फटता है यह देख देख,
दुनिया का धोखा लगता है,
रिश्तों की दहलीज तले,
बचपन फिर भिंचकर रोता है।
क्या लिखकर तुमको बतलाऊँ,
वो छोटी कितनी प्यारी थी,
फूलों सी महकती बातें थीं,
आँखें तारों से प्यारी थीं।
पर नोच दिया उसको उस दिन,
रिश्तों की परछाई ने,
दूर के ठहरे चाचा ने,
और मुँहबोले भाई ने।
जब ताऊ बड़े पापा ने ही,
छोटू को बचपन हीन किया,
दूर के लगते दादा ने,
विश्वास का दामन क्षीण किया।
तब बात धधक यह उठती है,
क्यों वह ही निसदिन घुटती है,
अंकल अब कुछ शर्म करो,
ऐसे तुच्छ न कर्म करो।।
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हमारे देश भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुए लगभग पैंसठ वर्ष हो चुके हैं। आज़ादी के बाद से ही भारत ने विश्वपटल पर एक ऐसे देश के रूप में पहचान बनाई है जिसने इतने कम वर्षों में इतनी प्रगति कर ली। लेकिन मेरा भारत आज भी अपनी बच्चियों को इतनी स्वतंत्रता न दे सका कि वो रात के किसी भी समय अपनी मर्ज़ी से घूम सकें। आज देश की लाखों लड़कियाँ अपने ही परिवार के सदस्यों के द्वारा किए गए यौन शोषण की शिकार हैं। आज भी लाखों लड़कियाँ इस अपराध को मुंह बंद करके सह लेती हैं। इसी दृश्य को मन में रखकर मैंने यह कविता लिखी है।