भूख से मौत तक RATNA PANDEY
भूख से मौत तक
RATNA PANDEYकहीं से सिसकियों की आवाज़ आ रही थी,
दबी-दबी घुटन का एहसास दिला रही थी।
किसी माँ के बेटे की सांसे उखड़ी जा रहीं थीं,
नहीं मिली थी चार दिनों से रोटी,
अंतड़ियाँ सूखी जा रहीं थीं।
द्रौपदी लाई थी दो दाने कृष्ण के लिये ,
जो उन्हें संतुष्टि दिला गये ,
क्योंकि वह भगवान थे।
लेकिन यहाँ दो दाने कुछ ना कर सके,
दो दानों से उबला हुआ पानी पी लिया था उस माँ के बेटे ने।
भर गया माँ पेट कहकर खुश करता रहा वह,
बीत गये दिन चार ,
चेहरा फीका पड़ता गया तब।
बह रहे थे माँ की आँखों से आँसू कुछ इस तरह,
नदी में बाढ़ आई हो जैसे उस तरह।
एक-एक पल जीना दूभर हो रहा था,
सिसकियों के अलावा घर में सन्नाटा सा हो रहा था।
कर रहा था कोशिश जीने के लिये वह,
माँ के गिरते हुए आंसुओं को वह पोछ रहा था।
माँ के सर पर हाथ फेरकर बोल रहा था ,
माँ तू चिंता मत कर।
बड़ा होकर जब मैं खूब कमाऊँगा,
तब हम पेट भरकर रोटी खाएँगे।
इतना कहकर वह शांत हो गया,
माँ की सिसकियाँ चीखों में बदल गईं।
उस माँ के बेटे को भूख ही निगल गई।
भूख से मौत तक यह,
दर्द की कहानी किसी एक गरीब की नहीं है।
हमारे देश में हर रोज़ ना जाने कितना खाना फेंका जाता है,
ना जाने कितना अनाज सड़ जाता है,
किन्तु दुर्भाग्य देखिये कि वह किसी गरीब तक नहीं पहुँच पाता।
हमारे देश में ना जाने कितने लोग रोज़ भूखे ही सो जाते हैं,
और कुछ तो भूखे ही दुनिया छोड़ जाते हैं,
लेकिन उनकी अंतिम सांसें, जाते-जाते कह जाती हैं ,
कि मिलती नहीं जब रोटी नसीब से,
भूखे पेट से यह आवाज़ आती है,
खिला दे मुझे या उठा ले मुझे।
विदा होऊं जब इस जहाँ से मैं ,
फूलों के बदले मेरी अर्थी पर,
एक रोटी सजा देना।
जिस्म तो भूखा मर ही गया,
मेरी रूह को ही खिला देना।
भटक ना पाए वह भूखी, चैन से उसे सुला देना।
भटक ना पाए वह भूखी, चैन से उसे सुला देना।
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मेरी कविता भूख से मौत तक देश के गरीबों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती है। हमारे देश में कितने ही गरीब ऐसे हैं जिन्हें दो वक्त का भोजन भी नसीब नहीं होता और उन्हें भूखे पेट ही सोना पड़ता है। इसके विपरीत देश में हर रोज़ न जाने कितना भोजन फेंका जाता और सड़ता है पर वह किसी गरीब की भूख शांत करने के काम नहीं आ पाता। भूख से मौत के समाचार अक्सर हमें सुनने को मिलते हैं, इसी मर्म को इस कविता के माध्यम से दर्शाया गया है।