ज़िन्दगी कही खो ना जाये VINAY KUMAR PRAJAPATI
ज़िन्दगी कही खो ना जाये
VINAY KUMAR PRAJAPATIनमी थी आँखो में,
बारिश में ये बह ना जाए,
मंज़िल कि इस राह में,
ज़िन्दगी कहीं खो ना जाए।
एक पल जो मैं रूक जाऊँ,
पिछली बातों से घबराऊँ,
आँखो ने जो सपने देखे,
उनको कैसे पूरा कर जाऊँ,
पन्नों पर जो शब्द लिखे हैं,
ऑंसुओं में कही धुल ना जाएँ,
मंज़िल कि इस राह में,
ज़िन्दगी कहीं खो ना जाए।
एक आरजू दिल मे जगी,
फिर न जाने कब सो गई,
रोशनी मे जो परछाई दिखी,
चुपके से कहीं खो गई,
हँसती रही वो किरण,
जो छा गई थी सूर्यास्त से,
मिल गई वो दिशा,
जो खो गई थी रात से,
सफर की शुरूआत मे आँखे कहीं सो ना जाएँ,
मंज़िल कि इस राह में,
ज़िन्दगी कहीं खो ना जाए।
चाँद की परछाई में,
डूब गया है फूल कोई,
एक बार जो कदम बढ़ेंगे,
होगी फिर ना भूल कोई,
सच है ये सपना,
लक्ष्य के पहले तपना,
तपकर सूरज बन गया जो,
होगी फिर न रात कोई,
रोशनी की इस छाँव में,
होगी फिर ना धूप कोई,
अंधेरे के उजाले में,
रोशनी हमको भूल न जाए,
मंज़िल कि इस राह में,
ज़िन्दगी कहीं खो ना जाए।