मूकदर्शक  RATNA PANDEY

मूकदर्शक

RATNA PANDEY

विधि का विधान नहीं है यह, जो पाप यहाँ हर रोज़ होता है,
पापियों का है बड़ा जमघट जो इन घटनाओं को अंजाम देता है।
नौ महीने कोख में रखकर जन्म देती है जो नारी,
उसी को अपनी वासना का शिकार बनाते हैं दुराचारी।
 

हो रहा है अन्याय धरा पर दिन प्रतिदिन,
बीत रही हैं घड़ियाँ यहाँ दिन गिनगिन।
ना जाने कब किसकी बारी आएगी कुछ नहीं है निश्चित,
परिवारों के चिरागों की बलि चढ़ती जाएगी,
इस कलयुग में यह है मुमकिन।
 

कांप जाती है धरा, उसके ऊपर ही होता है पाप यहाँ।
गगन ऊपर से रोता है, नहीं दे पाता है पापी को सज़ा।
 

हो रहे हैं बलात्कार कभी चोरी से,
कभी सीनाजोरी से।
जानता है बलात्कारी कि बीच में कोई नहीं आएगा,
मेरा सामना यहाँ कोई नहीं कर पाएगा।
चीखें सुनकर किसी अबला की,
कोई बहरा तो कोई गूंगा बन जाएगा।
ख़त्म हो गई होगी आँखों की हया जिसकी,
वह उस घटना का वीडियो बनाकर दुनिया को दिखाएगा।
 

मुझे क्या करना है कहकर कोई वहाँ से गुज़र जाएगा,
और कोई, नहीं है यह मामला मेरे परिवार का
सोचकर चैन की बंसी बजाएगा।
 

मेरे ना सही किसी परिवार की तो है यह बेटी,
यह धारणा यदि इन्सान के दिल में बसेगी,
तभी ऐसी घटनाओं पर लगाम लग सकेगी।
 

हो रहे हैं शोषण कभी नादान बचपन के,
कभी अल्हड़ जवानी के।
मौन व्रत धारण करके बैठे हैं तमाशाई,
हैं बड़े बेग़ैरत जो सब देखकर अनजान बनते हैं,
मर्दानगी पर जो अपनी बड़ा ही नाज़ करते हैं,
नहीं बचा सकते किसी अबला की जो आबरु,
वह इस समाज को ही नहीं पूरे देश को शर्मसार करते हैं।
 

बदनाम है रावण मगर मर्यादा में रहा था वह।
आज ना जाने कितनी ही सीता बरबाद होती हैं बाज़ारों में,
दिन दहाड़े लुटती हैं वह भीड़ से भरी राहों में।
अब नहीं कोई राम आएगा रावण को हराने को,
ना ही कोई आएगा सीता को बचाने को।
 

मूक बने दर्शक से नहीं कोई उम्मीद है रखनी,
अब तो हर सीता को ही रक्षा करनी पड़ेगी स्वयं अपनी।
कर नहीं पाती हैं अबला सामना,
हैवानों की गिरफ़्त में फंसकर।
छोड़ जाती हैं अपनी देह,
इस हैवानियत से जूझकर।
 

है भगवान से यह प्रार्थना कि नारी को इतनी शक्ति दे,
कि जब हो रहा हो ज़ुल्म उनपर,
वह माँ काली का रूप धर पाए,
काटकर शीश हैवानों के,
उनकी माला चौराहे पर लटकाए,
ताकि पापियों को यह पैगाम मिल जाए
कि बस अब और नहीं, वरना अगला शीश तुम्हारा होगा,
बस अब और नहीं, वरना अगला शीश तुम्हारा होगा।

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