लगता है चुनाव है दुर्गेश कुमार सराठे
लगता है चुनाव है
दुर्गेश कुमार सराठेलगता है चुनाव है,
जिसने कभी बात न की हो,
कभी न रुख किया हो सम,
वे आकर कहते हैं अब,
और दुर्गेश कैसें हो तुम।
यह सब जो बदलाव है,
भैया लगता है चुनाव है।
कभी न ऐसे पास में बैठे,
हमेशा लगता था जैंसे हो ऐंठे,
कभी निकलते न थे जिनके बोल,
वे लिये मंजीरा पीटे ढोल,
उन पर कैसा यह प्रभाव है,
भैया लगता है चुनाव है।
कटु भाषी भी मृदुलता ओढ़े,
बड़े-बड़े अकड़ू देखो कैसे
दिखते हैं दोनों कर जोड़े,
मुख से निकले जनाब और श्रीमान,
मुर्गे भी अब कीटों का
खो कैसा करते हैं सम्मान,
यह सब जो बदलाव है,
भैया लगता है चुनाव है।