चित्रकार जो मैं भी होता  aniket sachan

चित्रकार जो मैं भी होता

aniket sachan

चित्रकार जो मैं भी होता कितने चित्र बनाता तेरे,
दिल की दीवारों को रंगकर यूँ रंगीन बनाता मेरे।
सर्वलोक में न हो कोई एक तस्वीर बनाता ऐसे,
चित्रकार जो मैं भी होता कितने चित्र बनाता तेरे।
 

चटक नीले के गहरे रंग से गहरे नेत्र बनाता तेरे,
उन झीलों में डूब सके ऐसे अरमान बनाता मेरे।
न खारी हो पाए झीलें सब संजोग बनाता ऐसे,
चित्रकार जो मैं भी होता कितने चित्र बनाता तेरे।
 

शांत हरे के सहमे रंग से लंबे केश बनाता तेरे,
इन केशों की शीतल छाया में नींदे बनाता मेरे।
यूँ ही लहराती ये जाए एक झोका बनाता ऐसे,
चित्रकार जो मैं भी होता कितने चित्र बनाता तेरे।
 

इंद्रधनुष के रंगों से सारे अंग बनाता तेरे,
रंग गुलाबी है रह जाता जाने क्यों पास मेरे।
प्रीत हो सारी जिसमे एक चित्र को रंगता ऐसे,
चित्रकार जो मैं भी होता कितने चित्र बनाता तेरे।

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